Tuesday 25 October, 2011

22.10.2011

22/10/2011 की वो शाम बिलासपुर के पन्नो पर दर्दनाक हादसा बनकर दर्ज हुई और कुछ दिनों बाद मिट भी जाएगी,,पर मेरे लिए तो कभी ना भूलने वाली रात बनकर रह गई॥महज कुछ दिनो पहले तक, मैं भी उस ख़ूनी रास्ते की रोज़ की यात्री थी; और लगभग रोज़ ही रेल पर दौडती उस मौत से सामना होता ही था॥बहुत बार खुद की भी जान बचाई और बहुत बार दूसरों की जान जाते हुए भी देखा, मगर ये हादसा अपने साथ बहुतों की ज़िन्दगी बदल गया।
   जाने क्यूं मुझे बिलासपुर आने की जल्दी थी उस दिन,,अपने घर आने की जल्दी तो सब को होती है, मुझे भी थी। आडवानी जी की यात्रा ने पहले ही हलाकान कर रखा था,सारा रायपुर शहर उत्सव में डूबा हुआ था;इसी चक्कर में दो गाडियां छूट गई। जैसे तैसे स्टेशन पहुंची तो पतिदेव का फ़ोन आ गया कि,,यहां हादसा हुआ है,शायद गाडी लेट हो जाए। पर मैं तो जैसे उड कर आने को भी तैयार थी।
आखिरकार रात को जैसे ही गाडी में अपनी सीट संभाली वैसे ही फ़िर से पतिदेव का संदेसा; पर इस बार बहुत परेशान स्वर और सीधे आदेश दे दिया कि अभी मत आओ, कल आना। फ़ायरिंग, आगजनी और हुल्लड की दुहाई देकर कहा, चुपचाप वापस जाओ।
मेरे दिमाग में तो रायपुर का मंज़र घूम गया फ़िर वापस जाने की हिम्मत नही हुई तो ;;पर मैं तो मैं हूं… पहले ही ठान लिया था कि चाहे जो हो जाए आज तो या मैं नही या कुछ भी नही। पतिदेव को झूठ बोला कि ट्रेन  तो चल पडी है, अब क्या करुं?? उन्होने कहा ठीक है आ जाओ देखते है॥ बस फ़िर क्या था मै चल पडी॥ और जैसा होना था वैसा ही हुआ। जैसे ही ट्रेन चली अफ़वाहो ने अपना रंग दिखाना शुरु कर दिया। कोई कह रहा था, सारी ट्रेनों  को रोका जा रहा है। किसी ने कहा कि पथराव हो रहा है और हद तो तब हुई जब एक ने कहा ट्रेन में ही आग लगा दी गई है॥ उस समय तो मै सोचने लगी कि अगर इस गाडी मे भी आग लगी तो कैसे और कहां से निकलना है।(बाद मे सोचा तो खूब हंसी) ख़ैर मैने उस दिन ये जाना कि लोगो की कल्पनाएं और ज़बान दुनिया की सबसे तेज़ चीज़ें है।
   धीरे धीरे सरकती गाडी ने आखिरकार तिल्दा में आकर आगे जाने से इनकार कर दिया। और मेरे फ़ोन पे मैसेज और कॉल  की आवाजाही ने मुझे हरपल  ये अहसास दिलाया कि मैं अकेली नही। सबके प्यार और चिंताओं ने सच मे बहुत सहारा दिया। और इतनी भूख लगी थी मुझे, साथ ही पानी भी खत्म हो गया था,कोल्डड्रिंक  का अहसान मैं कभी नही उतार सकूंगी। एक घंटे बीतते बीतते डर लगने लगा और भूख प्यास हवा हो गई। मेरे सेलफ़ोन ने भी साथ देने से इनकार कर दिया।
 तैंतीस कोटि देवों को याद कर लिया मैने और गाडी ने सरकना शुरु किया। मन में एक उम्मीद जगी। फ़िर इसी तरह रुकते चलते फ़ाईनली रात को ढाई बजे मैने बिलासपुर स्टेशन में कदम रखा। पतिदेव के चिन्तित चेहरे पर खुशी की लहर देखी मैनें और पास खडे एक सज्जन ने बताया कि आपके लिए ये रात को बारह बजे से यहां पर खडे परेशान हो रहे है और पल पल की खबर ले रहे है। आप बहुत खुशकिस्मत है। सच में मैं रो पडी। घर पहुंचकर जो डांट पडी वो भी बहुत भली लगी॥
रास्ते में वो ख़ौफ़नाक,वीरान जगह भी देखी जहां आठ घंटे मे ही लोग बदहवास होकर खामोश भी हो गए थे। एक अज़ीब सा सन्नाटा था वहां। पता नही अब उनके घरों में कभी दीवाली होगी भी या नही पर मैं और मेरे जैसे बहुत लोग तक़दीर वाले है जो आज की काली रात में दिये जला रहे है और कल की अमावस में आतिशबाजियां भी चलाएंगे।
ईश्वर उनके अपनों को हिम्मत दे और उनको भूलने की ताक़त जिन्होनें अपनी आंखों से ये दहशत देखी है। बहरहाल “शुभ-दीपावली”

Sunday 2 October, 2011

hum me hai hero !!!!!!

हम में है हीरो……
पेट्रोल के बढे हुए दाम की ख़बर हर दिन लगभग हर न्यूज़ चैनल और अखबार में आती ही रहती है। आम आदमी इतना परेशान और किसी बात से नही जितना महंगाई से है। एसी कमरों में बैठकर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की उथल-पुथल और डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत की बातें करने वाले, ये नही जानते है शायद कि रोज़ाना खाने-पीने के सामान से लेकर,दवाई,स्कूल-कॉलेज की फ़ीस,किताब,कॉपी,ड़ॉक्टर,आने-जाने की तक़लीफ़ और अनायास ही प्रकट होने वाले ख़र्चों के साथ खुद को “हर एक” कितना अकेला, परेशान और मजबूर पाता है।
         घर से सुबह निकलने वाला प्रत्येक व्यक्ति यह सोचता है कि कैसे चार पैसे ज्यादा कमा ले; ताकि बीवी को एक अदद डिनर करा सके, ताकि बच्चे को उसका मनपंसद खिलौना लाकर दे सके। गृहणी सोचती है कि, गैस सिलेंडर को किस तरह किफ़ायत से चलाय कि वो पहले से कुछ दिन और ज्यादा खिंच सके।बच्चों और पति की खाने-पीने की फ़रमाईशों कि कैसे पूरा करे???
मध्यम वर्ग की इस ज़द्दोज़हद को ना तो उच्च वर्ग समझता है और ना ही निम्न वर्ग को इन सबसे कोई मतलब है।चाहे रिश्तेदारियां निभाना हो या सामाजिक सरोकार,कोई भी बंधन ,व्यवहार,रीत-चलन,कर्त्तव्य  और अधिकार इन सब का अकेले ठेका इसी ‘जिम्मेदार’ वर्ग ने ले रखा है।
       सचिन के शतक ना बनाने पर नाराज़ होने से लेकर ,अमेरिका में प्रेसीडेंट क्यों और क्या कर रहे है; तक मध्यम वर्ग की पकड मजबूत है॥चोरी,डकैती,लूट,आतंकवाद से लेकर बम-ब्लास्ट का शिकार भी सबसे अधिक यही वर्ग होता है। अन्ना हजारे के समर्थन में मज़मा लगाना हो या फ़िर सारेगामा में विनर के लिए वोटिंग करनी हो। अमरसिंह को जेल जाना हो या एश्वर्या की प्रेग्नेंसी न्यूज़,,यही मिडिल क्लास हर जगह अपनी जागरुक उपस्थिति दर्ज कराता है।
समय के समानांतर चलते हुये,समाज की ये मुख्य धारा हर युग हर कालखंड में बलिदान करती आई है परंतु ये भी सच है कि मानो जीवन और समाज का अस्तित्व भी इससे ही है। अभावों और संघर्षों में भी जीने की अदम्य इच्छा  रखने वाला और स्वाभिमान को सर्वोपरि मानने वाला ये वर्ग घोर निराशा में भी हमेशा मुस्कुराता है। परंपराओं ,संस्कारों के संरक्षण का महान उत्तरदायित्व भी इसी के कांधों पर रहता है।हर समस्या को “अपनी” समस्या मानकर सोचने समझने और तर्क करने वाला ये वर्ग ही देश की आवाज़ है।
रहमान के लेटेस्ट गाने की लाईनें “हम में है हीरो” शायद इसी के लिए लिखी गई है। इतिहास साक्षी है कि समाज में कोई भी परिवर्तन हो, सबसे पहले यही वर्ग आगे बढकर उसे गले लगाता है। गोया कि हर हालात से तालमेल बिठाना और आगे बढते जाना ही मिडिल क्लास की तक़दीर है।
फ़िलहाल एक बार फ़िर मध्यम वर्ग की सतह पर हलचल हुई है और लहरों ने आने के संकेत दिए है। आधुनिक धुनों पर नाचनें, नये-नये गैजेट्स उपयोग करने, मॉल के हर कोने पर छा जाने(भले ही विंडो शॉपिंग के लिए) और हर छोटी बडी बातों में खुशियां तलाशने वाला ये सर्वाधिक शिक्षित वर्ग एक बार फ़िर कुछ बदलाव होने की आस लिए आसमान को ताक़ रहा है।
      जाने कब ये स्वयं की शक्ति को पहचानेंगे?? मेरे विचार से तो अभी लोहा गरम है और हथौडे में भी गरमी है; फ़िर मारने में देर क्यूं?? कहीं ऐसा ना हो कि महंगाई और भ्रष्टाचार इस भोले-भाले वर्ग को पूरी तरह निगल जाये और देश में केवल दो वर्ग रह जाएं जिनको हर हाल में सिर्फ़ और सिर्फ़ अप्रभावित रहना है।ईश्वर कहीं तो ऐसी आग जलाए जिसकी तपन मध्यम वर्ग तक पहुंच कर उसे नींद से जगा दे॥ आमीन…