एक प्रतिष्ठित मैगज़ीन ने अपने वार्षिक सर्वेक्षण में 50 रसूखदार भारतीयों का नाम चयन किया है। इनमें अधिकतर उद्योगपति है और उनके बाद अभिनेता, मीडिया पर्सन,खिलाडी और सामाजिक कार्यकर्ताओं को स्थान प्राप्त हुआ है। इस सर्वेक्षण का आधार इन व्यक्तियों की लोकप्रियता, कर्तव्यनिष्ठा , वैश्विक भागीदारी और करोडो की कमाई है। एक भी मध्यम या निम्न मध्यन वर्गीय व्यक्ति इस सूची में शामिल नही है।कोई कलाकार, साहित्यकार या संगीतज्ञ भी इस श्रेणी में सम्मिलित नही है। क्या उनका भारत-निर्माण में कोई योगदान नही है??
पत्रिका की चतुराई है कि उसने राजनीतिज्ञों की सूची अलग से तैयार की है,,सम्मिलित सूची में कदाचित कोई राजनेता स्थान प्राप्त नही कर पाता और महिमामंड्न के आधुनिक काल में सत्तसीन राजनीतिकों ने सर्वत्र स्थान सुरक्षित किए है।इस तरह के एकतरफ़ा सर्वेक्षण और आत्मवाद का क्या अर्थ है,,मुझे समझ नही आता॥
आम जनता को सीधे तौर पर इस सूची निर्माण में शामिल नही किया जाता,,अवाम में ही सारी शक्तियां निहित होने के बावजूद वह स्वयं से अपरिचित है; और इसी अजनबीपन का परिणाम है ऐसे बेतुके और फ़िज़ूल सर्वेक्षण, जहां सिर्फ़ धनाढ्य वर्ग की पूजा की जाती है।यदि देश का प्रत्येक युवा “जागो इंडिया”
के विज्ञापन की तरह जाग गया तो नेता उसी तरह खामोश हो जाएंगे, जिसमें जागरुक युवा, प्रचार के लिए आए नेता से देश को चलाने के “जॉब” के लिए आवश्यक क्वालिफ़िकेशन पूछता है और नेता निरुत्तर हो जाता है।
जनता हर भ्रष्टाचार से , हर अन्याय से उद्द्वेलित होती है परंतु प्रदर्शन का ठेका युवा पार्टियों ने ले रखा है जो महज़ पुतला जलाकर;; इस तरह के कल्याणकारी कार्यों में भी अपने स्वार्थ की संकरी गलियां ढूंढ लेती है। इसके अलावा छात्र पढाई में, कार्यकारी पैसे कमाने में, युवा इंटरनेट में और वृद्ध अपने इलाजों में व्यस्त है तो देश की सफ़ाई के लिए समय किसके पास है???
लोग कहते है सरकार को बदलना चाहिए, सरकार कहती है जनता में बदलाव की आवयश्कता है, दोनों मिलकर अधिकारी तंत्र को बदलना चाहते है पर खुद को बदलने की बात कोई नही करता। आज हम जिन सस्याओं से जूझ रहे हैं, उनका समाधान हम अपनी सोच के उस स्तर से नही कर सकते,, जिस स्तर पर हमने उन्हें उत्पन्न किया था। मगर देश तो सभी का है,,इसके लिए उसी तरह दर्द होना चाहिए जैसे अपने शरीर के लिए होता है।
फ़िलहाल पत्रिका ने रसूखदारों को खुश कर दिया है, हो सकता है उसे भी रसूख मिल जाए और मैं विज्ञापन की लाईने याद करके जागने का प्रयास कर रही हूं क्योकि “हर सुबह सिर्फ़ उठना नही जागना है”॥
गंभीर विषय पर चिंतन.....
ReplyDeleteसच कहा, यह आत्मप्रशंसा से ज्यादा कुछ नहीं।
लोकतंत्र में जहां सब कुछ जनता के हाथों में हैं.... सबकी तकदीर जनता लिखती है उस दौर में उद्योगपतियों, नेताओं को प्रभावशाली की सूची में शामिल कर जनता का मखौल उडाने से ज्यादा कुछ नहीं।
वास्तव में जिस दिन जनता सिर्फ उठेगी नहीं... जाग जाएगी..... सबका हिसाब बराबर हो जाएगा।
वैसे इन सर्वेक्षणों का न कोई आधार होता है और न ही कोई औचित्य। ये रसूखदारों के नखरे से ज्यादा कुछ नहीं।
जो भी देखो लगता है स्वार्थों की पूर्ती के लिए ही किया जा रहा है..... अच्छी विचारणीय पोस्ट
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteshukriya monica aur sangya di ko
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