जो रात तुम्हारे साथ थी गुज़ारी
उस आख़िरी रात का,दर्द अभी बाकी है…
रह रह के मांगता है,मेरा दिल हिसाब मुझसे
सवालों और जवाबों का कुछ कर्ज़ अभी बाकी है…
जाने फ़िर कभी दोबारा बात हो ना हो
ज़िंदगी में फ़िर वो हसीन रात हो ना हो
फ़िर कभी मिलें ना मिलें,
थोडी दूर साथ चलें ना चलें,
तेरे सारे कशमकश जानता है प्यार है मेरा
फ़िर जाने कौन सा ‘नासूर’ हुआ मर्ज़ अभी बाकी है…
हर दुआ पर तुझे ही मांगना
अब आदत सी हो गई,
तेरी यादों में कब दिन ढला
जाने कब शाम रात सी हो गई,
अपनी हर ख़्वाहिश हर सांस से ज्यादा चाहा तुमको
फ़िर भी कुछ प्यास कुछ तडप मुझमें बाकी है
मालूम नही अदा करने को कौन सा फ़र्ज़ अभी बाकी है…।
प्यार ऐसा ही होता है....
ReplyDeleteसब कुछ भूला देता है।
सुंदर भाव। गहरे अहसास।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय हिंद...वंदे मातरम्।
शुक्रिया अतुल जी…आपसे बेहतर और कौन समझेगा प्यार को,,है ना???
ReplyDeleteआपको भी देश का 63वां गणतंत्र मुबारक हो॥
बहुत खूबसूरत ..............
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...
आना सार्थक हुआ...
सादर.