Tuesday 6 September, 2011

JAADOO HAI..........NASHA HAI......

जादू है नशा है,,
दुनिया गोल है,ये मैने सुना था पर अब दिल से अनुभव भी करती हूं। आज से तीस साल पहले विज्ञान की फ़ंतासी कथाएं लिखते समय लोग इस कल्पना को अक्सर शामिल किया करते थे कि,मनुष्य के पास ऐसी मशीन होगी जिससे वह पलक झपकते ही और एक बटन दबाकर सात समंदर पार की सूचना जान सकेगा,कुछ भी मनचाहा प्राप्त कर सकेगा और जिसे जब चाहे जैसा देख सकेगा। ये केवल मानव मन की कल्पना है जो आज उसके प्रयासों से साकार हो चुकी है।
      इंटरनेट एक जादुई दुनिया है,और मानव की क्रांतिकारी सफलता है।कितना सरल हो गया है अपने मित्रों से बात करना,उनकी तस्वीर। देखना,उनकी आवाज़ सुनना और जानकारियां देने के लिए बहुत सारी साइटों  का जमावडा है।बिलासपुर की एक लडकी शिकागो में अपनी सखी से नही मिल सकती पर, अपनी सहेली को अपनी बात अपनी आवाज़ और तस्वीर के साथ बता ज़रुर सकती है।सबकुछ बहुत अद्भुत और रोमांचक है॥
वो भाग “जादू” था, और अब ये अंश “नशे” की कहानी कहेगा…इंटरनेट एक नशा बनता जा रहा है या कहिए बन चुका है। हम जितने एक्टिव इस दुनिया में रहते है,उतने असली जीवन में भी नही है शायद। मेरी उंगलियां इस बोर्ड पर जितना तेज़ भागतीं है,उतना अब ब्लैकबोर्ड पर नही भागती।जिनके बारे में कभी सोचा भी नही था,आज वो सब दोस्तों की सूची में जगह बना चुके है। एक-दूसरे के विचार जान रहे, पसंद-नापसंद पूछ रहे, स्वयं को अभिव्यक्त कर रहे ऐसे लोगों की दुनियां है; जो अपने ही वज़ूद को पहचान रहे है। अगर ऐसा नही है तो फ़िर क्या है जो अजनबियों को भी बाँधकर रखता है??
      इन अनजान लोगों में एक बात कॉमन है,वो है ज़िंदगी में कुछ ना कुछ तलाश करना। सबकी अलग –अलग कहानी है,अलग ज़रुरतें है, अलग फ़साना है फ़िर भी सबका एक ही सुर है- “ हम साथ साथ है। और यही हम सब की वास्तविक आवश्यकता  भी है। तन से दूर रहकर भी मन से जुडे रहना ही असली और खरा रिश्ता है।
और रही बात इस नशे से दूर रहने की तो इसके भी फ़ायदे और नुकसान है। जीवन की आपाधापी से कैसे भी हो,,इस के लिए समय मिल ही जाता है !! और कुछ पल के लिए ही सही सुकून भी है,,ठीक किसी नशे की तरह। तो इससे दूर रहना भी फ़िलहाल कठिन लगता है। क्योकि हमे जिस वस्तु से दूर रहने की हिदायत होती है,हम उसी के पास जाना चाहते है। अजीब प्रवृत्ति होती है मानव मन की। मन के चंचल घोडे को थामना सरल है पर हम खुद उसे सम्भालना नही चाहते,,क्यो??इसके कारण अज्ञात है…
  एक एक सोलह साल की लडकी कि उसके सारे हितैषी कहेंगे कि फलां लडका गुंडा है,बेवकूफ़ है,फ़्लर्ट है और तुमको धोखा दे देगा;उसके इश्क़ में मत पडना। मगर लडकी ने कसम खा रखी है कि वह उस लफंगे को ही प्यार करेगी॥ये तो एक उदाहरण दिया है,,पर हम भी पूरी ताक़त से अपने दिमाग के विचार को दरकिनार कर मन के घोडे छोड रहे हैं॥थामना पडेगा इसे !! है ना??

5 comments:

  1. स्वाधा जी यक़ीनन आज बच्चे/बुज़ुर्ग/नौजवान सभी इस मायावी जादू की गिरफ्त में हैं...जिसका परिणाम कहीं आश्चर्यजनक तो कहीं ख़ौफनाक़ आया है...पल-पल बदलती दुनिया की तमाम ख़बर एक क्लिक पर मौजूद होना भला किसे पसंद ना आयेगा...पर कहते हैं जब ज़रूरत नशे में तब्दील हो जाती है तो उससे बचकर ही रहना चाहिये...अब इस ज़माने के बेपरवाह लोगों को तय करना है की इस बेहद ज़रूरी चीज़ का किस हद तक सदुपयोग करें या कुछ और....बहरहाल सार्थक पोस्ट के लिये बधाई.....

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  2. सही फ़रमाया कुछ हद तक

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  3. aadarniya swadha ji , bahut achchha likha hai aapne aur sach bhi hai...vishya na sirf swagatey hai balki vyapak roop se charcha bhi kari jani chahiye...hamesha ki tarah..striya lekhan ke liye badhai...aum shubhkamnaye....

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  4. सच कहा दुनिया गोल है। और ये गोलाई सिमट गई है... कम्‍प्‍यूटर के स्‍क्रीन में।
    हम अपने पडौस में हो रहे हलचलों को जाने न जानें...देश और दुनिया में क्‍या हो रहा है, इसकी खबर हमें लग जाती है।
    सोशल नेटवर्किंग साईटों ने हमें बांध रखा है। इसके फायदे भी हैं और नुकसान भी। अच्‍छे अनुभव भी हैं तो बुरे भी।
    आप ही की कुछ पंक्तियों को उध्‍द्त करता हूं, ''तन से दूर रहकर भी मन से जुडे रहना ही असली और खरा रिश्ता है।''
    ये है सच्‍चा रिश्‍ता.... और यह सब जगह लागू है। इंटरनेट पर भी और वास्‍तविक जीवन में भी। जहां पर तन का रिश्‍ता और भौतिकता आती है, वहां स्‍वार्थ और बुराई का समावेश हो जाता है, लेकिन जहां मन से, दिल से, आत्‍मा से जुडाव की बात होती है.... वहीं से सच्‍चे रिश्‍ते की शुरूआत होती है.....

    एक गजल की चंद पंक्तियां यहां पर याद आ रही हैं, ''जिस्‍म की बात नहीं उनके दिल तक जाना है.... लंबी दूरी तय करने में वक्‍त तो लगता है...''
    बहरहाल अच्‍छा विषय। व्‍यापक तौर पर चिंतन की आवश्‍यकता है इस पर.... और फिलहाल आपने इस पर चिंतन का अवसर दिया, इसके लिए आपका आभार...........

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  5. आवश्यकता अविष्कार की जननी है पढ़ा है , इन्टरनेट पहले विलाशिता , फिर समय अंतराल में काम के क्षेत्र में आराम दायक और अब अनिवार्य आवश्यकता का रूप ले लिया है , विज्ञान है , विज्ञान का वरदान है , फिर अविशाप को भी ध्यान रखना ही पड़ेगा , सही रूप से दोहन का अभाव ही अभिशाप है , कई विषय है हम सिर्फ सोचते रहते है जिस पर चिंतन करने को आप हमेशा ही प्रोत्साहित करती हो ये खूबी है , लेखनी में गज़ब की ताकत है ...........अभिव्यक्ति निः संदेह प्रसंसनीय ,..............साधुवाद

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