Friday 30 March, 2012

April Fool


आज  “फ़ूल डेहै। पहले ये दिन बहुत खास हुआ करता था। मैं नए-नए तरीकों से अपने परिचितों कोफ़ूलबनाया करती थी,, पिछले ही साल अपने एक मित्र को ऐसाबनायाथा मैने कि उसकी जान पे बन आई थी और हमारी दोस्ती टूटने  की नौबत थी॥ उम्र बढ्ने के साथ- साथ ऐसी हरकतें बचपना कहलाती हैं ,और हम गंभीरता  का कृत्रिम आवरण ओढ लेते है। और आज इस दिवस का महत्व इसलिए भी कम हो गया है क्योंकि रोज ही लोग एक-दूसरे कोटोपीपहना रहे है,दग़ा दे रहे हैं और मोबाईल ने तो लोगों के जीवन का आनंद ही छीन लिया है।बडे तो बडे है; मगर बच्चे भी टीवी, ट्यूशन और एक्सट्रा क्लास में व्यस्त है अतः ऐसे हास्य बोध के लिए किसी के पास समय नही है। इसका स्थान धड़ल्ले  से सुनाये और पढे जाने वाले द्विअर्थीय संवादों और चुटकियों ने ले लिया है।
      आधुनिक ओछी मानसिकता की पराकाष्ठा  ये है कि; लोग सच बोलने वाले कोहरिश्चंद्रऔर सज्जन कोगांधीकहते हैं,,गोया कि गाँधी और हरिश्चंद्र कोई गाली हो। अपने आस-पास के उन बुजुर्गों से पूछिए जो देश की स्वतंत्रता  के साक्षी है; कि गाँधी होने के क्या मायने हैइसलिए जान लेना चाहिए कि महात्मा गांधीमजबूरी का नामनहीख़ैर आज से कॉन्वेंट स्कूलों के दरवाज़े पुन: खुल गये(बहुतों के 15 दिन पहले ही खुल गये होंगे) और ऐसा लगता है किगरमी की छुट्टियाँकुछ सालों पश्चात केवल अतीत की बातें बनकर रह जाएंगी। पिज़्ज़ा कल्चर और कॉन्कॉर्ड की गति से भागती दुनिया ने बच्चों से बचपन  छीन लिया है। मैं और मेरे हम उम्र बहुत भाग्यशाली है कि हमें हमारा बचपन; मासूम बचपन नसीब हुआ।
                 15 अप्रैल तक हमारी छुट्टीयां शुरु हो जाती थी,जो लगभग 15 जुलाई तक; यानि कि पूरे 3 महीने चलती थीं अर्थात उस समय पढाई और स्कूल की कोई भागमभाग नही थी, फ़िर भी सब कुछ भला सा था।छुट्टीयों में नानी के घर जाना और निश्चिंत होकर खेलना,,यही हमारा प्रिय शगल हुआ करता था दोपहर भर लूडो, ताश, कैरम, पचीसा, कॉमिक बुक्स और शाम को लंगडी,पिट्टूल, परी-पत्थर और रात को छुपा-छुपाई ;;यही थी मेरी दिनचर्या कितनी ऊर्जा होती थी उस समय हमारे पास और कितना वक्त भी !!आज के बच्चों के पास ये दोनो ही नही है। और इन सबसे भी यदि मुझे फ़ुरसत मिल जाती थी तो आम चुराना,,जेठ की भरी दोपहरी में साइकिल में फ़ॉर्म जाना,तितली पकडना; ये सब मेरे प्रिय काम हुआ करते थे
         हमारे माता-पिता भी आजकल केकेयरिंगअभिभावकों की तरह नही होते थे॥ बच्चों को उनकी दुनियां में छोडकर माएं सुकून की सांस लिया करती थी और पिता हमारी गतिविधियों दृष्टि अवश्य रखते थे,,दख़ल नही ।इसका कतई ये अर्थ नही कि उनको हमसे प्यार नही था,, बस वो जीवन ही ऐसा सरल था कि बेवजह टोका-टाकी की ज़रुरत नही रहती थी अब वो दिन बुलाने पर भी वापस  नही आएंगे, बस उनकी मीठी यादें हैं मेरे पास परिपक्वता हमारा बहुत कुछ छीन लेती है, फ़िर भी हम जल्दी-जल्दी बडे होना चाहते है॥ बचपन में जो तितलियों के झुंड, फूलों की खुश्बू रोमांच देती थी; अब उनके सामने से गुज़र जाने पर भी मन में कोई भाव उत्पन्न नही होते इतनी संवेदन हीनता इस परिपक्वता की ही देन है।
     हर व्यक्ति के अंतस में उसका बचपन छिपा होता है, जो कभी स्वयं के बच्चों या नाती-पोतों के सामने उजागर होता है और इसे जीवित रहना भई चाहिए, क्योकि इसकी मौन उपस्थिति से भी मनुष्य का चित्त प्रसन्न रहता है। और एक बार यदि मनुष्य बचपन को खो दे तो वह बचपना करने लगता है।बचपनऔरबचपनेमें बहुत अंतर होता है और यही अंतर व्यक्ति को ले डूबता है। मुझे दुख है इस पीढी और आनेवाली पीढी के लिये,, जो नही जानते कि उनके पास क्या नही है???

12 comments:

  1. समय दर समय आधुनिकता की बढती चाह ने भले ही सब कुछ आसान कर दिया हो पर काफी कुछ खो भी रहा है।
    अब बच्‍चे खुले मैदान पर खेलते हुए नहीं, बल्कि ड्राईंग रूप में बैठे बैठे बडे हो जाते हैं।
    अप्रैल फूल के माध्‍यम से एक गंभीर विषय पर चिंतन का अवसर दिया.... आभार......।
    वैसे आपकी लेखनी आसपास के विषयों पर ही होती है.... ऐसे विषयों पर होती है, जो हमारी जिंदगी से जुडे हुए होती हैं।
    लिखते रहिए....... शुभकामनाएं......

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    1. mai to likhti hi rahungi..par apki pratikriya ka intezar bhi rehta hai....
      thankoo so much ki apne padhaa

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  2. बहुत खूब....सचमुच बहुत कुछ पुराना याद आ गया...

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  3. सच, आने वाली पीढ़ी शायद ही जान पाए कभी क्या क्या हुआ करता था , आज सच वो उल्लास बच नहीं पाया वो भी दिन थे कभी जब आज के दिन एक उत्साह का माहौल बना करता था ,और आज तो हर दिन ही " फूल " बनते जा रहे है अगर ये कहा जाये तो भी अतिश्योक्ति नहीं है हम चाहे जिस रूप में या यु कह ले जिंदगी में अपने कई ऐसे अवसर आते है जब हम ठगे ठगे से अनुभव करते है , ...............अलग विषय का चयन आपका अंदाज़ है , बेहतरीन ..............मुझे तो याद आ गया वो गीत " वो भूली दासता लो फिर याद आ गयी नज़र के सामने ............................. !!

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  4. very true...but Every thing in this world hv a definite Cause which should be Continued to the coming Generations too...It should be Light not Life taking.....for the fun n enjoy....Becoming Fool is much Interesting Than Making some one.....in my view....thnx...for such detailed Description.....

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    1. exactly sir....actually in sabke peechhe hum hi hai jo bachho ko samay nahi dete aur unse ummeede karte hai...

      anyway thanx for ur cmnt sir

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  5. बहुत सुन्दर लिखा आपने.....
    एक एक शब्द यूँ लगा जैसे मैं खुद लिख रही हूँ...................

    प्यारा ,निष्फिक्र....बिंदास बचपन याद आ गया.....

    बहुत बढ़िया लेखन स्वधा जी.

    अनु

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    1. thanx anu ji..bas apke hi words hai..maine apni kalam se likh diya hai....

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  6. बेहतर अंदाज रहा आपका .....सब कुछ अपना सा लगा याद आया भुला हुआ हर पल ...!

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  7. ji shukriya..apko pasand aya yahi bahaut hai mere lie

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