Tuesday, 6 March 2012

आखिर गुस्सा क्यों आता है??



कुछ दिनों पहले अखबार और टीवी पर एक खबर छाई हुई थी- ‘सैफ़ अली ने की मारपीट’, ’नवाब बिगडे क्यूं?आदि आदि। सेलीब्रिटिज़ ने तो तुनकमिजाज़ी को अपने आचरण व्यवहार में खून की तरह शामिल कर लिया है।कभी सलमान किसी से भिड जातें है,तो कभी शाहरुख़ की बदज़ुबानी की ख़बरें आख़िर इन सबको इतना गुस्सा क्यों आता है?? मानव मन में जाने कितनी संवेदनाएं होती है ना,, प्रेम,क्रोध,लोभ,मोह,ईर्ष्या,भय और ना जाने क्या-क्या??परंतु मानवीय संवेगों में गुस्से के जितना अभिव्यक्त और मुखर और कुछ भी नही। प्यार को आदमी उसे भी कई बार नही बता पाता जिससे वो प्यार करता है,ईर्ष्या को भी हजम कर लेते है लोग…मगर गुस्सा जब उबाल पर हो तो, उसकी आंच को जितना भी कम किया जाए वो अनजाने ही अपनी तपन का अहसास करा ही देता है।
   मेरे विचार से छोटे नवाब और इनके जैसे ‘बडे लोग’; जिनकी नाक पर गुस्सा बैठा रहता है,अपनी संवेदनाएं नही ,अपने दंभ को व्यक्त करते है। सफ़लता,धन और लोकप्रियता; ‘विनम्रता’ छीन लेती है। यदि तीनों चीज़ों के साथ भी व्यक्ति विनम्र है तो या तो वह बहुत महान है या फ़िर नेताओं की तरह डिप्लोमैट…पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम, हमारे मास्टर ब्लास्टर,ऑस्कर विजेता रहमान आदि वास्तविक विनम्रता का जीवंत उदाहरण हैं। ये पूर्णतया मेरे व्यक्तिगत विचार है और मेरे ही व्यक्तित्व में क्रोध तत्व अधिक विद्यमान है, इसलिए किसी के भी विषय में राय देना मेरी उद्दंता होगी।
   हमारे देश में सबसे अधिक गुस्सा अवाम के भीतर होता है पर इसे गाहे-बगाहे बिना बात के दिखाने का काम करते है रईसजादे या नेतागण। रात को घर देरी से पहुंचने पर 15 वर्षीय पुत्र से कारण पूछ्ने पर उसका गुस्सा और बदतमीज़ी मेरी कल्पना से बाहर की चीज़ है। ये सही है की वय:संधि पर खून की गरमी दिमाग में चढकर बोलती है परंतु पिता को पलटकर उत्तर देना मेरे लिये तो दु:स्व्प्न ही है। खेल के दौरान किया आक्रामक आचरण महज संवेग है पर मैदान पर वो भी दंडनीय होता है। कभी किसी औद्दोगिक घराने के मुखिया को इस तरह का आचरण करते नही सुना, परंतु उनके युवा पुत्र गुस्से को जेब में लिए घूमते है।ज़रा सी हुक्म की नाफ़रमानी हुई तो ये गुस्सा जेब से निकलकर हाथ में आ जाता है और ख़त्म होता है किसी के ‘ख़ात्मे’(जेसिका लाल की तरह) पर।
  नेतापुत्र,छुटभैय्ये नेता और हर गांव-गली में नज़र आने वाला हीरो टाईप टपोरी गुंडा; स्व्यंभू पराक्रमी होता है,,जो प्रधानमंत्री  से लेकर प्रशासन तक को ऊंगली की नोंक पर रखकर घूमता है और किसी भी सहज,सरल प्रश्न पर उसका वाक्य होता है, ”जानते नही क्या कि मैं कौन हूं??” मानो यही उसकी पहचान है। मीडिया वाले भी दूसरों की विवशता,उनके रहस्य और अपनी शक्ति के दामन में गुस्से को थामे रहते है और समयानुसार प्रदर्शन में कोई कमी नही छोडते…पुलिस को तो गुस्सा दिखाने का लाइंसेंस  मिला हुआ लगता है। ऑफ़िस में बाबू से लेकर,स्कूल में अध्यापक, घर में माता-पिता, बाहर निकलो तो ऑटो वाले,सब्जीवाले से लेकर वो दुकानदार जिससे आपने छुट्टे मांग कर भयंकर अपराध कर लिया है सभी इस गुस्से की गाडी पर हरदम सवार रहते हैं।
   अब प्रश्न ये है कि आखिर गुस्सा क्यों आता है? कुछ भी अपने मन का ना हो तो ये “गुस्सा” आने का माहौल बनाने लगता है। और ये गुस्से की सुनामी अपने साथ जाने क्या-क्या तबाह कर देती है।क्रोधवश मुख से निकली बात कभी-2 रिश्तों को ही तोड देती है,और कभी-कभी क्रोध को दमन करके बांध बनाने की कोशिश में अवचेतन में द्वेष और घृणा के पौधे स्वत: पनपने लगते है। कुल मिलाकर गुस्सा कभी लाभदायक नही हो सकता मगर फ़िर भी प्यारा सा, झूठा सा, मीठा सा और छोटा सा गुस्सा बहुत ज़रुरी होता, अपने ‘ईगो’ को संतुष्ट करने के लिये।
गुस्से को बाहर निकालना कभी-कभी बेहद ज़रुरी होता है। किसी भी तरह की घुटन दिल को, आपके वज़ूद को आत्मविश्वास को हिला कर रख देती है।मेरे एक मित्र कहते है कि जो सबको खुश रखने का प्रयास वो सबसे ज्यादा दुखी होता है। सही भी है कि सबकी खुशी के चक्कर में अपनी खुशी का गला बार-बार घोंटा जाता है।इसलिए क्रोध भी अभिव्यक्त होते रहना चाहिए पर इसके लिये ये भी आवश्यक है कि आप जिस पर गुस्सा निकाल रहे है वो आपकी भावनाओं को अपने साथ जीवन में उसी तीव्रता से समझे,जिस तीव्रता से आप उसे महसूस कर रहे है।
  जाने ये गुस्से का ज्वार ये उबाल हमें किस सभ्यता की ओर ले जायेगा?? मेरी अल्प बुद्धि में ये बात समझ आती है कि गुस्से ने सिर्फ़ छीना है,प्यार ने सिर्फ़ खोया है और मुस्कुराहट ने सिर्फ़ पाया है। तो फ़ैसला आपका है…छीनने से बेहतर है,खोकर सबकुछ पा लेना!!! तो गुस्से को त्यागने का प्रयास करें, मैं तो कर ही रही हूं॥

4 comments:

  1. छोटी सी दुनिया मिली, मिला बड़ा सा नाम।
    नाम सहेजा जाय ना, सो होते बदनाम॥

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  2. "गुस्से ने सिर्फ़ छीना है,प्यार ने सिर्फ़ खोया है और मुस्कुराहट ने सिर्फ़ पाया है।"
    सच में गुस्सा सिर्फ खुद को ही नहीं दूसरों को भी जलाता है..बहुत सार्थक लेख.. !!

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  3. आज कल तो सभी का यही हाल है यहाँ तक के आजकल तो हर हिन्दी धारावाहिकों में भी यही दिखाया जा रहा है की आज कल बच्चे अपने ही अभिभावकों से किस तरह बदतमीजी से जावाब सवाल किया करते हैं। यह सैफ आली खान का किस्सा तो तो फिर भी एक सच है। ....सार्थक आलेखा

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