Tuesday, 6 March 2012


कल होलिका दहन है और उसके अगले दिन होली खेली जाएगी।यह उत्सव बसंत के आगमन और बैर को मिटाने वाला है,,इसके अलावा धार्मिक मिथ इसे भगवान की विजयगाथा के रुप में प्रस्तुत करते है; जिसमे हिरण्यकश्यप नामक बुराई का अंत और प्रहलाद नामक अच्छाई की जीत होती है। मगर अब तो लगता है कि ,होली; बुराई को जिताने के लिए ही मनाई जाती है,क्योंकि सारे बुरे काम इस दिन अपने शीर्ष पर होते है और लोगों के पास अपने बचाव का एक जुमला सुरक्षित है कि”बुरा ना मानो होली है”॥
    क्या होली सारे बुरे काम करने का लाइंसेंस देती है? शरीर की चमडी तक निकाल लेने वाले रंग,,भंग,,शराब,,छेडखानी; ये सब आधुनिक होली के स्वरुप है। होली को लेकर मेरे मन में एक अनजान भय बैठा है,,क्योंकि त्यौहार की आड में स्वच्छंदता और उसका दुरुपयोग इस दिन की विशेषता बन चुकी है। जो रंग नही खेलना चाहता,उसे रंग लगाने और परेशान करने में लोगों की दिलचस्पी मेरी समझ के बाहर है। खासतौर से पुरुष,स्त्रियों के साथ ही होली खेलना चाहते है, शायद जाने- अनजाने समीपता का सुख अवचेतन को संतुष्ट करता है। बचपन में मैने बहुत होली खेली है,,पर जैसे-जैसे बडी होती गई लोगों  से डर लगने लगा है,जो आज तक बरकरार है।
होली हमारा राष्ट्रीय त्यौहार है जो  वर्ग, जाति,स्थान,परंपरा,व्यक्ति और लिंगभेद से ऊपर है,,फ़िर इसके अच्छे मायने क्यूं नही खोजे जा सकते??? जीवन से निराश कोई अपना,,सीमाओं पर रहने वाले हमारे प्रहरी,,अपनों के होते हुए भी अकेलापन काटने को विवश आज के आधुनिक माता-पिता,,वृद्धावस्था में किसी आश्रम में एकाकी रहने वाला हमारा अतीत और भूख से आकुल कोई गरीब;;इनसे पूछिए कि होली के क्या माने होते है??? अपना अमूल्य समय निकालकर इनके नाम कर दीजिए फ़िर देखिए कि होली के रंग कितने हसीन है……
व्यक्ति का अपना आचरण,वो आईना होता है जिसमें वह अपना प्रतिबिंब देख सकता है,,और अपना चेहरा अगर खूबसूरत देखना है तो नेक और भले काम करने चाहिए ताकि बार-बार आईना देखने की तमन्ना हो। बहरहाल जो होली की प्रतीक्षा कर रहे है उन्हें मुबारक हो और जो अति व्यस्त रहते है उनको एक अव्सर मिला है एक दिन ‘जीने’ का,,तो फ़िर खुल के जीयें और खूब खेलें प्यार भरी होली॥ होली मुबारक हो !!!! 

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