Tuesday, 16 August 2011

AASTHA...

एक व्यक्ति ने लाखो रुपए खर्च करके एक मंदिर के सामने ज़मीन खरीदी और बीयर बार बनाने की मंशा रखते हुए,निर्माण कार्य प्रारम्भ किया। जैसा कि सदैव होता है,मंदिर के अनुयायी और सम्भ्रान्त नागरिक इस तथाकथित पाप को रोकने के लिए सभाएं,धरने,जागरण एवम प्रार्थनाएं करने लगे। विशेष सामूहिक पूजा-अर्चना आयोजित की गई ; जिसमें सभी ने एक साथ यह दुआ की; कि “बार” ध्वस्त  हो जाए या नष्ट हो जाये।
       तमाम विरोधों के बाद भी बार बनकर तैयार हो गया और ठीक उसके उद्घाटन समारोह में दुर्भाग्य पूर्ण तरीके से वह मज़बूत बार की इमारत स्वतः गिरकर ध्वस्त हो गई। विरोधी अपनी जीत पर प्रसन्न हो गए।अब आया कहानी में ट्विस्ट,,बार स्वामी ने न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर दी कि- बार के ध्वस्त होने का कारण उन लोगों की प्रार्थना है,जो उन्होनें सामूहिक तौर पर की थी; क्योंकि अन्य कोई कारण दृश्य नहीं है, अतः उन सभी को दंड दिया जाए।
   अब अनुयायियों के घबराने का अवसर था,,अतः उन्होनें भी गुहार लगाई कि-यह बार उनकी पूजा-प्रार्थना के कारण ध्वस्त नहीं हुआ है। जज निर्णय नही ले पा रहे है,क्योकि एक तरफ़ वो है जो ईश्वर पर विश्वास कर रहा है।और दूसरी तरफ़ उन लोगों की भीड है,जो रोज़ मंदिर जाते है,पूजा करते है; मगर ईश्वर की शक्ति पर उन्हें भरोसा नही।
   कितनी आश्चर्यजनक कथा है ना?? परंतु यथार्थ के बेहद निकट है। भगवान का दिनरात नाम रटने वाले ही सर्वाधिक असुरक्षित,स्वार्थी,लोभी एवम दुराचारी होते है। इसके विपरीत अंतर्मन में ईश्वर को बसाने वाले दिखावा नही करते। ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ क अंतिम दृश्य पूरे फ़िल्म की आत्मा है,,जिसमें अपराधी सरगना ज्योतिषी की कनपटी पर पिस्तौल टिकाकर उससे उसका भाग्य पूछ्ता है। और ज्योतिषी अपने होश खो बैठता है। इसके बाद मुन्ना भाइ सबसे कहते हैं कि- “ ये दुनिया में साला कोई सच बोलता है तो लोग उसकी वाट लगा देते है”,,इसके मायने है कि यदि हम गांधी के आदर्शों  और सिद्धांतों को अपना नही सकते तो हम उनको “राष्ट्र्पिता” क्यों कहते है?? क्यों  महात्मा कहकर सडकों और दिवसों के बहाने उनको याद करते है? यदि उन्हें वास्तविक सम्मान देना है तो,सत्य और अहिंसा को स्वीकार करना ही होगा।
   ईश्वर की रची दुनिया में लोग ईश्वर का सहारा केवल परलोक सुधारने के लिए लेते है या पाप छिपाने के लिए॥इसके अलावा और कोई कारण मुझे तो समझ नही आ रहा है॥रही बात मन की शांति की,तो वो मन में ही मिलेगी,,मंदिर में नही !!!!!

3 comments:

  1. very nice post Swadha Ji...and very true..

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  2. aastha....thnx...for sharing.....yeh to apani-2 soach hai....lekin man ki shanti man mein paana thoda kathin jaroor hai kyon ki uske liye SADHANA ki jaroorat hogi....jo keval Mandir, Masijid,Church aur Gurudwaara se hi shuru hoti hai....jismein GURU ka hona bhi jaroori hai....thnx... once again for the path.....LIBERATION.....

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  3. सच है।
    लोग भगवान को याद करते है यह सोचकर कि परलोक सुधर जाए पर भगवान की शक्ति का भान नहीं करते..... वरना पाप, लोभ, घृणा, अहिंसा, दुराचार का स्‍थान नहीं होता दुनिया में।
    यही बात महापुरूषों के साथ भी है। हम उनको याद करते हैं, उनकी जयंतियां मनाते हैं पर क्‍या एक दिन भी उनके बताए रास्‍ते पर चलते हैं, यदि ऐसा करें तो यह उनको सच्‍ची श्रध्‍दांजलि होगी।
    बहरहाल, अच्‍छी और प्रेरक पोस्‍ट।
    शुभकामनाएं....................

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