Monday, 8 August 2011

अपनी मिट्टी…।

आज सुबह मंदिर जान हुआ,जैसे सावन के हर सोमवार पे बहुत से लोग जाया करते हैं। बाद मे भगवान के लिए समय मिले ना मिले ये सोचकर बडे सारे लोग सुबह ही इसे काम समझकर निपटाने पहुंच जाते है,मेरी तरह्॥इसिलिए मंदिर मे काफ़ी भीड थी आज। हमेशा की तरह पूजा सामग्री खरीद रही थी,तभी एक पुरुष स्वर कानो मे पडा,,"आज शिवरात्रि है क्या??" मैनें ये प्रश्न पूछने वाले की तरफ़ पलटकर देखा। मुझे उत्सुकता हुई कि ये विचित्र प्रश्न करने वाला है कौन?? भारत में तो मुसलमान और ईसाई भी जानते है कि शिवरात्रि इस समय नही होती;फिर ये जानते नहीं या फिर अनजान होने का नाटक कर रहे हैं???
       मैनें सरसरी निगाह से उसे देखा,,वो अंग्रेजों की तरह दिखने वाला एक भारतीय ही था॥ उसे फूल बेचने वाले बच्चों ने बताय कि आज सावन का आखरी सोमवार है,इसलिए सभी पूजा करने आए हैं।फिर उसने अगला प्रश्न मुझसे किया,"क्या आपके ५ रु से शिव जी खुश हो जाएंगे???"
मैनें जवाब देना अपना कर्तव्य समझा,और कहा- आप प्रणाम  भी कर लेंगे तो वे खुश हो जाएंगे,मगर यदि आपने फूल ले लिए तो ये बच्चे ज़रुर खुश होन्गे और शिव जी को खुश होने से कोई नही रोक पाएगा। वो मेरे जवाब से संतुष्ट लगा,,मुझे जल्दी थी तो मै बिना रुके मन्दिर के अंदर चली गई।
           मेरे पूजा करने के समय मैनें देखा कि वो भी फूल लेकर चला आया,और मुझसे पूछ पूछ कर उसने पूजा सम्पन्न की। मैं प्रसाद लेकर जाने के लिए चली ही थी कि महाशय फ़िर मेरे सामने थे;और लोग वहां उम्रदराज़ थे,तो शायद उसे बात करने को मैं ही मिली थी। उसने खुद ही बताना शुरु किया कि वो काफ़ि सालों तक देश से बाहर रहा है,और अभी अभी यहां लौटा है।
           उसने कहा- हम अमेरिका में इस तरह पूजा नहीं करते।बल्कि ध्यान लगाकर आराधना करते है,,उसे यहां का तरीका बहुत अजीब लगा कि;किस तरह हम पानी,अगरबत्ती,धूप,दीप,नारियल,से भगवान को 'परेशान' करते है।मैने उसे बताया कि यही फ़र्क है देस और परदेस में,,हमारे लिए ये आडम्बर ही पूजा है और हमारा भग्वान इसे ही पसन्द भी करता है। आप वहा ऐसा इसलिए करते है क्योकि वो देश आपको इतनी भी आज़ादी नही देता कि आप अपनी ईच्छा अनुसार पूजा भी कर सकें
फ़िर मै उनसे बिदा लेकर चल पडी,,ड्राइव करते समय यही सोच रही थी कि,क्या सुख है विदेशों मे??फ़िर भी हर कोई चाहता है कि उसक बच्चा पढ लिख कर विदेश जाए…क्यो???? यही करने के लिए और अपने देश और मिट्टी से दूर होने के लिए॥
      हर जाने वाले के लिए वापसी का रास्ता ज़रुर होना चहिए ताकी वो वतन से ताउम्र जुडा रहे।

1 comment:

  1. मंदिर में पूजा....
    देश में और परदेश में.....
    अलग अलग तरीकों से......
    बात सिर्फ इतनी सी है, लेकिन इन बातों के जरिए जो संदेश निकाला है आपने वो गजब का है.....
    सच में हम विदेशी सभ्‍यता और संस्‍कृति की ओर जितने भी आकर्षित हों अपनी मिट्टी अपनी मिट्टी होती है और इसकी महक अपनी होती है.....
    ये हिंदुस्‍तान ही है जहां हम मिट्टी को माथे पर लगाते हैं और इस धरती को मां का दर्जा देते हैं.... पूरी दुनिया में ऐसा और कहीं नही।
    बेहतरीन प्रस्‍तुति।
    शुभकामनाएं आपको...............

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